अमृत वचन
हमारा सम्मान हो ऐसी चाह हमारा अपमान कराती है
मुक्ति इच्छा के त्याग से होती है वस्तु के त्याग से नहीं
संसार में कुछ भी चाहोगे तो दुःख पाना ही पड़ेगा
किसी वस्तु का सबसे बढ़िया उपयोग है उसे दूसरे के हित में लगाना
हम घर में रहने से नहीं फंसते परंतु घर को अपना मानने से फंसते है
असत का संग छोड़े बिना सद्संग का प्रत्यक्ष लाभ नहीं है
भगवान् में अपनापन सबसे सुगम और श्रेष्ठ साधन है
संसार को अपना न माने तो इसी क्षण मुक्ति है
किसी तरह भगवान् में लग जायो फिर भगवान् अपने आप संभाल लेंगे
ठगना दोष है ठगे जाने में कोई दोष नहीं
जिसका स्वभाव सुधर जायेगा उसके लिए दुनिया सुधर जाएगी
भगवान् के सिवाय कोई मेरा नहीं है यह असली भक्ति है
भोगी व्यक्ति रोगी होता है दुखी होता है दुर्गति में जाता है
संसार में आसक्ति का त्याग किये बिना भगवान् में प्रीति नहीं होती
लेने की इच्छा वाला सदा दरिद्र ही रहता है
मनुष्य को कर्मों का त्याग नहीं कामना का त्याग करना है
श्रेष्ठ पुरुष वही है जो दूसरों के हित में लगा हुआ है
याद करो तो भगवान् को याद करो काम करो तो सेवा करो
धर्म के लिए धन नहीं मन चाहिए
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